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वह जो 1931 में प्रेसीडेन्सी महाविद्यालय में छोटे से कक्ष के रुप में आरंभ हुआ आज चार बड़े शहरों कोलकाता नई दिल्ली बेंगलौर एवं हैदराबाद में कई एकड़ भूमि पर इसके भवन शोभायमान हैं । जिसका आरंभ में कुल वार्षिक व्यय रु से भी कम धनराशी से हुआआज इसका कुल वार्षिक व्यय , 15,000,000/-रुपया से भी अधिक है । जो में एकमात्र मानवीय ‘संगणक’ से आरंभ हुआ आज इसमें 250से अधिक संकाय सदस्यों , 1000 से अधिक सहायक कर्मियों और अनेक आधुनिकतम वैयक्तिक संगणक कार्यस्थल लघु संगणक सुपर लघु संगणक और मुख्य विश्चना संगणक हैं । ये सभी वे प्रभावशाली ऑंकड़े हैं जो इतनी दूर मार्ग तय करने की एक मामूली विचार किए गए क्रियाकलापों के विस्तार और राष्ट्रीय जीवन के साथ संस्थान के घनिष्ठ सम्बन्ध को इंगित करता है ।
अपनी औपचारिक मात्रा
प्रो महालानोबीस 1920 में किसी समय प्रेसीडेन्सी महाविद्यालय में सांख्यिकीय प्रयोगशाला स्थापित किया । 17दिसम्बर 1931 को भारतीय सांख्यिकीय संस्थान एक विद्धत समाज और सांख्यिकीय प्रयोगशाला भवन के रुप में संस्थापित हुआ । यह संस्थान 28 अप्रैल 1932 में समाज पंजियन अधिनियम (1860 का XXI)के तहत् गैर लाभान्वित विद्धत समाज के रुप में पंजीकृत हुआ और अब पश्चिम बंगाल समाज पंजीयन अधिनियम 1961 के XXVI यथा संशोधित 1964 के तहत् पंजीकृत है । सर आर एन मुखर् संस्थान के अध्यक्ष हुए और संस्थान के कार्यालय में अघ्यक्ष के रुप में मृत्यपर्यन्त सन 1936 तक बने रहे ।
सांख्यिकी का भारत में एक प्रमुख शास्त्र के रुप में मान्यता
1920के दौरान और 1930 के मध्य तक भारत में हुए लगभग सभी या समस्त सांख्यिकीय कार्य केवल और केवल प् महालानोबीस के द्वारा ही किया गया । प्रारंभिक सांख्यिकीय अध्ययन जिसमें ऑंग्ल भारतियों की संरचना पर ऑंकड़ा विश्लेषण मौसम सम्बन्धी ऑंकड़ा वृष्टि ऑंकड़ा भू स्थितियों पर ऑंकड़ा इत्यादि भी शामिल है । इन प्रारंभिक अध्ययनों का बाढ़ नियंत्रण कृषि विकास इत्यादि पर व्यापक प्रभाव पड़ा और इससे सांख्यिकी को एक प्रमुख शास्त्र के रुप में मान्यता मिली ।
हम समृद्ध होने लगे
मलानानोबीस का प्रभाव इतना व्यापक था कि भौतिकी के विद्यार्थी सांख्यिकी में रुचि लेने लगे । सुभेन्दु शेखर बोस उनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध थे । इसके पश्चात् जे एम सेनगुप्त एच स सिन्हा और सी बोस एस एन रॉय के आर नायर के किशन और सी आर रॉव जैसे कई युवा विद्धान सांख्यविदों के एक क्रियाशील समूह बनाने के लिए इसमें सामिल हुए । महालोनोबीस केन्द्र में बने रहे । सांख्यिकी में सैद्धान्तिक शोध संस्थान में फलने फुलने लगा । प्रतिदर्श सर्वेक्षणों पर एक बड़े पैमाने पर शोध के लिए महालोनोबीस ने ‘रॉयल सोसाईटी फेलोशिप’ प्राप्त किया । कृषि प्रयोगों के अभिकल्प एवं विश्लेषण भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया और कुछ अर्न्तराष्ट्रीय संपर्क खास कर सर रोनाल्ड ए फिशर से हुआ ।